कैंची में बाबा नीब करौरी आश्रम की स्थापना के बाद से ही वहां हर साल 15 जून को स्थापना दिवस कार्यक्रम होता है। समय बीतने के साथ साथ स्थापना दिवस के इस कार्यक्रम ने कैंची मेले का रूप ले लिया और साल दर साल यह भव्य होता गया। मान्यता है कि बाबा नीब करौरी को हनुमान की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान का अवतार भी मानते हैं। एक आम आदमी की तरह जीवन जीने वाले बाबा अपना पैर किसी को नहीं छूने देते थे। यदि कोई छूने की कोशिश करता तो वह उसे हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे।
बाबा नीब करौरी को कैंची धाम बहुत प्रिय था। अक्सर गर्मियों में वे यहीं आकर रहते थे। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मंदिर बनवाया। उस मंदिर में हनुमान की मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यहां बाबा नीब करौरी की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है। बाबा नीब करौरी महाराज के देश-दुनिया में 108 आश्रम हैं। इन आश्रमों में सबसे बड़ा कैंची धाम तथा अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी स्थित टाउस आश्रम है।
हनुमान चालीसा पाठ करते हुए बनने शुरू हुए मालपुए का प्रसाद
जितना महत्व हर वर्ष 15 जून को कैंची धाम स्थापना दिवस का है, उतना ही महत्व यहां मिलने वाला मालपुए के प्रसाद का भी है। मालपुआ का प्रसाद बनाने के कड़े नियम हैं। मालपुएं बनाने का काम आज (12 जून) से बनने शुरू हुए। शुद्ध देशी घी से बने मालपुए बनाने में वही श्रद्धालु भाग ले सकता है जो व्रत पर हो और धोती, कुर्ता धारण कर उस अवधि में लगातार हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा हो। प्रसाद के रूप में मालपुए बांटने की इच्छा नीब करौरी महाराज की ही थी।
शिप्रा नदी पर स्थित मंदिर के स्थापना के पीछे रोचक कथा है। महाराज के मन में उठी मौज ही उनका संकल्प बन जाती थी। ऐसी ही मौज में बाबा ने कैंची धाम की स्थापना की थी। बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1942 में कैची निवासी पूर्णानंद तिवारी सवारी के अभाव में नैनीताल से गेठिया होते हुए पैदल ही कैंची की ओर लौट रहे थे। तभी एक स्थूलकाय व्यक्ति कंबल लपेटे हुए नजर आया तो तिवारी जी डर गए। उस व्यक्ति ने तिवारी जी को उनका नाम लेकर पुकारा और इस समय उनके वहां पहुंचने का कारण भी बता दिया। यह कोई और नहीं बल्कि स्वयं बाबा नीब करौरी महाराज थे। बाबा ने तिवारी से निडर होकर आगे जाने को कहा। तब तिवारी ने बाबा से पूछा कि अब कब उनके दर्शन होंगे तब बाबा ने कहा था 20 साल बाद। यह कहकर बाबा ओझल हो गए।
ठीक 20 साल बाद बाबा नीब करौरी महाराज तुलाराम साह और श्री सिद्धि मां के साथ रानीखेत से नैनीताल जा रहे थे। तभी बाबा कैंची में उतर गए और कुछ देर तक पैराफिट में बैठे रहे। उन्होंने पुरानी यादें ताजा की और यह स्थान देखने की इच्छा जताई। जहां साधु प्रेमी बाबा और सोमवारी महाराज ने 24 मई 1962 को बाबा के पावन चरण इस भूमि में रखे। यहां वर्तमान में कैंची मंदिर स्थित है। तब बाबा ने कैंची धाम में उस समय घास और जंगल के बीच घिरे चबूतरे और हवन कुंड को ढकने को कहा। ये वहीं स्थान धाम है जहां सोमवारी महाराज ने वास किया था। वर्तमान में इसमें भगवान हनुमान का मंदिर है। इसी में सोमवारी महाराज की धूणी के अवशेष आज भी सुरक्षित है। कैंची धाम से जुड़े एमपी सिंह ने बताया कि 15 जून 1964 को मंदिर में हनुमान की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई तभी से 15 जून को प्रतिष्ठा दिवस के रूप मे मनाया जाता है।
बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर अरबपति-खरबपति तक शामिल हैं। बाबा के इस पावन धाम में होने वाले नित-नये चमत्कारों को सुनकर दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने मिरेकल आफ लव नाम से बाबा पर पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाबा नीब करौरी के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन है। इनके अलावा हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, एप्पल के फाउंडर स्टीव जाब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, विराट और अनुष्का जैसी बड़ी हस्तियां बाबा के भक्त हैं।
कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल शहर के पास स्थित है। नैनीताल से 17 किमी दूर कैंची धाम नाम की जगह है, जहां आप सड़क मार्ग के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं। दिल्ली से नैनीताल की दूरी लगभग 324 किलोमीटर है। सफर तय करने में करीब साढ़े 6 घंटे का वक्त लगेगा। आगे का सफर भी सड़क मार्ग से कर सकते हैं। अगर आप हवाई सेवा चाहते हैं तो कैंची धाम से सबसे करीब 70 किमी दूर पंतनगर हवाई अड्डा है। कैंची धाम तक पहुंचने के लिए टैक्सी या बस मिल जाएगी। ट्रेन से कैंची धाम का सफर तय करना है तो निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। काठगोदाम से 38 किलोमीटर दूर नीम करोली आश्रम है।
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